लखनऊ। (Nikay chunav) नगर निकाय चुनाव भले ही सीमित क्षेत्र और शहरी मतदाताओं के जरिए होते हैं लेकिन, इनके संदेश दूरगामी होते हैं। साथ ही जब ये चुनाव लोकसभा चुनाव से पहले उसके रिहर्सल के तौर पर लड़े गए हों, इनका महत्व और भी बढ़ जाता है। पिछड़ा वर्ग आरक्षण की नई व्यवस्था से हुए नगर निकाय के चुनाव नतीजों ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी कई महत्वपूर्ण संदेश दिए हैं।
(Nikay chunav) इस चुनाव ने रणनीतिक रूप से फिर चूके मुख्य विपक्षी दल सपा के लिए संदेश तो दिया ही है, पहली बार शत प्रतिशत नगर निगमों व अन्य निकायों में पहले से बेहतर प्रदर्शन कर जीत हासिल करने वाली भाजपा को भी अलर्ट किया है। नतीजे यह भी बता रहे हैं कि बसपा को मजबूती से मैदान में आने के लिए पुराने प्रयोगों से बात बनने वाली नहीं है और आम आदमी पार्टी व एआईएमआईएम को नजरअंदाज कर रणनीति बनाना, आगे मुख्य राजनीतिक दलों को भारी पड़ सकता है। इस चुनाव में सिंबल पर चुनाव में हिस्सा लेने वाले दलों को न सिर्फ उनकी चूक का एहसास कराया है, बल्कि लोकसभा चुनाव के लिए उन्हें सजग भी किया है।
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नतीजों से स्पष्ट हो गया है कि शहरों में भाजपा का दबदबा कायम है। पार्टी इन नतीजों को ऐतिहासिक करार देकर लोकसभा चुनाव की ऊंचे मनोबल से तैयारी का आगाज कर सकती है। लेकिन, कई जगह उसके अपने ही विधायक-सांसद चिंता का सबब बने हैं। कई सांसदों-विधायकों को अपने शुभचिंतकों के सिवा कोई दूसरा पसंद नहीं है। (Nikay chunav) सिर पर लोकसभा चुनाव होने के बावजूद कई जगह सांसदों-विधायकों ने मनचाहे प्रत्याशी को टिकट न मिलने से न सिर्फ भितरघात किया, बल्कि कई जगह तो बागी लड़ाकर उनकी मदद भी की। लोकसभा चुनाव से पहले भितरघातियों व बागियों को लेकर भाजपा को स्पष्ट संदेश देना होगा। नगर पंचायतों व पालिका परिषदों के कई सीटों के नतीजे इसकी बानगी हैं।
दूसरी तरफ, सत्ता विरोधी मतों को सहेजने में सपा रणनीतिक रूप से फेल साबित हुई। प्रत्याशी चयन से लेकर प्रचार तक उसकी यह चूक नजर आई है। मथुरा व बरेली में प्रत्याशी पर अंत तक दुविधाजनक स्थिति और कई शहरों में प्रत्याशी घोषणा के साथ ही कमजोर चेहरे देने का संदेश, सपा के लिए भारी पड़ा। पार्टी शाहजहांपुर में तो अपना प्रत्याशी ही भाजपा में जाने से नहीं रोक पाई। रही सही कसर शिवपाल सिंह यादव के समर्थकों के नियमित अंतराल पर सपा छोड़ भाजपा में शामिल होने से पूरी हो गई। शिवपाल के साथ आने से एकजुट नजर आया परिवार ऐन चुनाव के बीच अलग-थलग नजर आने लगा। सपा के लिए लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के लिए नई रणनीति के साथ आने का संदेश बड़ा साफ है।
तीसरा, राज्य में बसपा की स्थिति पहले से और खराब हुई है। संकेत साफ है कि पुराने प्रयोग से पार्टी बेहतर की उम्मीद नहीं कर सकती है। दलित-मुस्लिम का समीकरण का पुराना प्रयोग कारगर साबित नहीं हुआ। पिछली बार दो जीत के उलट इस बार एक भी जीत न मिलना तथा तीन नगर निगमों में नंबर दो पर सिमटना इसकी बानगी है।
चौथा, आंकड़े बता रहे हैं कि प्रदेश में लगातार आधार बढ़ाने की कोशिश में लगी आम आदमी पार्टी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम), आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) की कोशिशें परवान चढ़ रही हैं। इन दलों ने न सिर्फ कई पालिका परिषदों, पंचायतों में जीत हासिल की है, बल्कि कई सीटों पर समीकरण भी बनाया-बिगाड़ा है। इन्हें नजरंदाज कर आगे रणनीति बनाना मुख्य राजनीतिक दलों के लिए जोखिमभरा हो सकता है। सुभासपा व निषाद पार्टी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। आगे ये गठबंधन की राजनीति में बेहतर मोलभाव करने की स्थिति में होंगे।
पांचवां, मुस्लिम मतदाता किसी एक खूंटे में बंधे रहने को तैयार नहीं हैं। उन्हें जहां बेहतर विकल्प नजर आ रहा है, वे वहां जाने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। (Nikay chunav) शाहजहांपुर व मुरादाबाद में कांग्रेस तथा मथुरा, सहारनपुर व आगरा में बसपा का नंबर दो पर पहुंचना इसका साफ संकेत है। वहीं, बड़ी संख्या में लोग स्थानीय स्तर पर लोगों की मदद कर उनका विश्वास हासिल कर सकते हैं। बड़ी संख्या में कम आर्थिक पूंजी व संसाधन वाले पार्षद व सदस्य जैसे पदों पर इस बार भी निर्दल प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की है। हालांकि लोकसभा चुनाव के नतीजे बताएंगे कि राजनीतिक दलों ने निकाय चुनाव के नतीजों के संदेशों को किस हद तक सुना और रणनीति बदलकर काम किया।