लखनऊ। (Nikay chunav) निकाय चुनाव में लचर रणनीति और प्रत्याशी चयन में देरी से समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा। स्थिति यह रही कि चुनाव में एक तरफ प्रत्याशी घोषित किए जा रहे थे, वहीं दूसरी तरफ जिलाध्यक्ष और महानगर अध्यक्ष घोषित किए जा रहे थे। इससे संगठन स्तर से वह प्रयास नहीं हो सका जिससे कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़े। यह भी हार की बड़ी वजह मानी जा रही है। फिलहाल पार्टी का दावा है कि उसका फोकस लोकसभा चुनाव पर है।
पार्टी को उम्मीद थी कि महापौर पद पर उसका खाता खुलेगा, लेकिन इस पर पानी फिर गया। पालिका परिषदों के साथ नगर पंचायत अध्यक्षों की संख्या भी बढ़ने की उम्मीद थी। इसमें भी पार्टी गच्चा खा गई है। जानकारों का कहना है कि जिस गति से महंगाई, बेरोजगारी सहित अन्य जनहित के मुद्दों पर सपा को सक्रियता दिखानी चाहिए थी, वह नहीं हो पाया। कई जगह पार्टी के उम्मीदवार आपस में ही भिड़ते रहे। एक ही जगह पार्टी से जुड़े दो से तीन उम्मीदवार मैदान में होने का भी उसे नुकसान उठाना पड़ा।
चुनाव के नतीजे हर राजनीतिक दल को सबक देने वाले
पिछली बार नगर निगमों में सपा के 202 पार्षद थे, जो कुल पार्षद का 15.54 फीसदी था। इस बार यह आंकड़ा 13.45 फीसदी ही पहुंचा। पार्टी के नगर पालिका परिषद अध्यक्ष 45 (22.73 फीसदी) थे, लेकिन इस बार यह संख्या घटकर 35 (17.59 फीसदी) पर पहुंच गई। पिछली बार पालिका सदस्यों की संख्या 488 (9.07 फीसदी) थी, जो इस बार 420 (7.88 फीसदी) पर सिमट गई। नगर पंचायत अध्यक्ष भी पिछली बार के 83 (18.95 फीसदी) की तुलना में घटकर 78 (14.34 फीसदी) रह गए। पंचायत सदस्यों की संख्या भी 453 (8.34 फीसदी) से घटकर 483 (6.73 फीसदी) पर पहुंच गई। इस तरह देखा जाए तो सपा को हर सीट पद का नुकसान हुआ है।
सपा ने विधानसभा चुनाव के दौरान जो गलती की थी, वही गलती (Nikay chunav) निकाय चुनाव में भी की। पार्टी नामांकन के अंतिम दिन तक प्रत्याशी घोषित करती रही। जहां पहले प्रत्याशी घोषित किए थे, वहां अंतिम समय तक बदलते रहे। कई जिलों में पार्टी विधायकों में खींचतान भी रही। मजबूरन पार्टी को ऐन मौके पर निर्दल उम्मीदवारों पर दांव लगाना पड़ा, पर यह दांव उल्टा पड़ा। निर्दल उम्मीदवार सियासी मैदान में पस्त नजर आए।
(Nikay chunav) पार्टी ने चुनाव प्रचार में भी रुचि नहीं दिखाई। राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव चुनाव के ठीक पहले मैदान में उतरे। उन्होंने गोरखपुर से चुनाव प्रचार की शुरुआत की। इसके बाद लखनऊ में मेट्रो से यात्रा की। फिर वह मेरठ, अलीगढ़ भी गए। कानपुर सीट मुफीद लगी तो यहां डिंपल यादव के बाद रोड शो भी किया। लेकिन चुनाव परिणाम पक्ष में नहीं आए।
बसपा ने कई सीटों पर मुस्लिम दांव चला, जबकि सपा इससे बचती नजर आई। इससे भी सपा के कोर वोटबैंक माने जाने वाले मुसलमानों में एकजुटता का अभाव दिखा। इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला।