अलीगढ़ में निकाय चुनाव (Nikay chunav) को लेकर प्रत्याशियों ने प्रचार में पूरी ताकत झोंक रखी है। शहर की सरकार का ताज किसके सिर सजेगा यह तो 13 मई को पता चलेगा। इस ताज तक पहुंचने में मेयर व पार्षद प्रत्याशी के आपसी गठजोड़ की अहम भूमिक है। 2017 में 70 वार्डों में नगर निकाय का चुनाव हुआ था। इस बार 90 वार्डों में चुनाव होना है। अलीगढ़-हाथरस दो लोकसभा क्षेत्र वार्डों के अर्न्तगत आते हैं। किसी भी दल के प्रत्याशी के लिए 90 वार्डों तक पहुंच पाना किसी भी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे में गली-गली, घर-घर वोटरों तक पैंठ बनाने का मुख्य जरिया पार्षद का चेहरा होता है।
भाजपा प्रत्याशी पर मतदाताओं को रुपये बांटने का आरोप
पार्षद प्रत्याशी ही अपने साथ-साथ मेयर प्रत्याशी के लिए वोट पड़वाने का मुख्य कार्य करता है। ऐसे में प्रमुख राजनीतिक दलों से पार्षद की टिकट नहीं मिलने पर दल से बगावत कर निर्दलीय ताल ठोंकना मेयर प्रत्याशी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है। इस चुनाव में बगावत लगभग हर दल में ही देखने को मिली है। (Nikay chunav) भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस से बगावत कर दो दर्जन से ज्यादा निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं।
भाजपा के पांच पार्षद निर्विरोध जीत दर्ज करा चुके हैं। ऐसे में इन निर्विरोध जीते पार्षदों को मेयर के पक्ष में वोटिंग करवाने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। वह इसलिए कि अन्य दलों के प्रत्याशियों ने अपने-अपने मेयर पद के प्रत्याशियों के समर्थन में वोट पड़वाने के लिए घर-घर जाना शुरू कर दिया है।
नगर निगम क्षेत्र के कुछ खास इलाकों में पार्षद व मेयर प्रत्याशी के लिए पड़ने वाले वोट छोटा वोट यानि पार्षद व बड़ा वोट यानि मेयर कहकर संबोधित किया जाता है। इन इलाकों में सपा से बागी हुए बसपा या फिर निर्दलीय ताल ठोंक रहे हैं। जिसके चलते कई वार्डों में छोटा वोट, बड़ा वोट एक ही पक्ष में डालने की अपील हो रही है।
पूर्व महानगर अध्यक्ष भाजपा व चुनाव विशेषज्ञ, सुरेन्द्र अग्रवाल ने कहा कि मेयर चुनाव में पार्षद प्रत्याशी घर-घर से वोट निकालने की मुख्य कड़ी होता है। (Nikay chunav) मेयर प्रत्याशी के चहरे से पहले क्षेत्रीय जनता के लिए पार्षद प्रत्याशी का चेहरा ही होता है। अगर दोनों में सामंजस्य का अभाव होगा तो निश्चित ही मेयर को मिलने वाले वोट पर प्रभाव पड़ता है।