लखनऊ। मुस्लिम वोटों की बिसात पर (Nikay chunav) निकाय चुनाव में इस बार अलग ही रंग दिखेगा। अगले साल यानी 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र सबने अपने-अपने मोहरे चल दिए हैं। समाजवादी पार्टी मेयर चुनाव में जहां सवर्ण कार्ड खेल कर भी मुस्लिमों के सर्वाधिक समर्थन की चाहत में है तो बसपा ज्यादा से ज्यादा मुस्लिमों को टिकट देकर अलग संदेश देना चाहती है। कांग्रेस भी मुस्लिम बाहुल्य वाले महानगरों में भी इसी वर्ग का प्रत्याशी उतार रही है। (Nikay chunav) भाजपा ने भी नगर पालिका अध्यक्ष के साथ नगर पंचायतों के लिए इस बार मुस्लिमों को टिकट में तवज्जो दी है लेकिन उनका समर्थन अपने काम के बूते चाहती है।
Nikay chunav: उम्मीदवार अपने-अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए क्षेत्र में निकले
फिरोजाबाद नगर निगम में भाजपा को छोड़ तीनों दलों ने मुस्लिमों को मैदान में उतार दिया है। इसी तरह की स्थिति मुरादाबाद में है। जहां सपा, बसपा व कांग्रेस ने तीनों ने रणनीति के तहत इस वर्ग का प्रत्याशी दिया है। सहारनपुर तो मुस्लिम सियासत का प्रमुख केंद्र रहा है। यहां सपा बसपा दोनों ने इसी वर्ग के प्रत्याशियों को उतार दिया है। अखिलेश यादव ने सोची समझी रणनीति के तहत मुस्लिम प्रत्याशी देने से परहेज किया है। (Nikay chunav) 17 नगर निगमों में उन्होंने 8 सवर्ण प्रत्याशी दिए हैं। केवल चार सीटों पर अल्पसंख्यकों को टिकट दिया है। सपा की रणनीति है कि शहरों में जहां सवर्णों की संख्या अपेक्षाकृत ज्यादा है, उनका वोट लेने के लिए उसी वर्ग के प्रत्याशियों को उतारा जाए।
सपा मानती है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों ने उसे एकतरफा समर्थन दिया। यही कारण है कि उसका ग्राफ पहले के मुकाबले बढ़ा। अब इसी समर्थन को बरकरार रखने में उसके सामने बसपा का मुस्लिम कार्ड बाधक है। एआईएमआईएम भी कई सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतार रही है। वर्ष 2017 के मेयर चुनाव (Nikay chunav) में एआईएमआईएम के मुस्लिम प्रत्याशी भाजपा के मुकाबले नंबर दो पर रहा था। जानकार कहते हैं कि इस बार हालात बदले हैं। अतीक अहमद कांड के बाद उठे विवाद के बीच सपा खुद को मुस्लिमों का समर्थन पाने के लिए मजबूत दावेदार के तौर पर पेश कर रही है। उधर, भाजपा अपनी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के जरिए मुस्लिमों के सर्मथन की उम्मीद में है।