निकाय चुनाव में जीतने की होड़ मुस्लिम वोटर्स का भरोसा

यूपी निकाय चुनाव ( Nikay Chunav) की तारीखों का ऐलान कभी भी हो सकता है. इस चुनाव के नतीजे 2024 के लिहाज से भी महत्वपूर्ण होंगे. ऐसे में सभी दल पूरी ताकत से निकाय चुनाव की तैयारी में लगे हैं. ( Nikay Chunav) इस चुनाव में मुस्लिम वोटर कितना महत्वपूर्ण है ये भी सियासी दलों को मालूम है इसीलिए निकाय चुनाव को लेकर सभी दलों की निगाह मुस्लिम वोटर पर भी है. प्रदेश के 24 जिलों में मुस्लिमों की संख्या 20 फ़ीसदी से अधिक है. इसके अलावा 12 जिलों में मुस्लिम आबादी 35 से 52 फ़ीसदी तक है.

इनमे श्रावस्ती, बहराइच, बलरामपुर, संभल, सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, मेरठ, अमरोहा, रामपुर और बरेली में मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा है. वहीं अलीगढ़, फिरोजाबाद, शामली सहित कई जिलों में नगर पंचायतों में मुस्लिम वोटर बड़ी संख्या में है. पिछली बार नगर निगम में 980 पार्षद पदों की तुलना में 844 पर ही बीजेपी ने चुनाव लड़ा था क्योंकि बाकी वार्ड मुस्लिम बाहुल्य थे जहां बीजेपी के पास उम्मीदवार ही नहीं थे लेकिन इस बार बीजेपी सभी वार्ड में चुनाव लड़ेगी. मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में मुस्लिम उम्मीदवार उतारे जाएंगे.

बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर बासिल अली ने कहा कि इस बार बीजेपी भी मुस्लिमों को नगर निकाय में अधिक संख्या में जोड़ने की कोशिश में लगी है. खासतौर से पसमांदा समाज के मुसलमानों पर फोकस किया जा रहा है. इसे लेकर ईद के बाद सम्मेलन भी कराए जाएंगे. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने जब यूपी प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान संभाली थी तभी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रशिक्षण वर्ग के कार्यक्रम में संकेत दे दिए थे कि इस बार निकाय में मुस्लिमों को भी टिकेट दिया जाएगा.उसी दिशा में अल्पसंख्यक मोर्चा ने अपना काम भी शुरू कर दिया था.

अब बात बसपा की करते हैं. पिछले चुनाव की बात करें तो बसपा को मुस्लिम दलित समीकरण का फायदा मिला था. इसी समीकरण से बसपा ने मेरठ और अलीगढ़ में महापौर की सीटें जीती थी. इन सीटों पर मुस्लिमों ने बसपा को जमकर वोट किया था हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से काडर वोट और मुस्लिम वोट बसपा से दूर हुए उसने पार्टी के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है.

यही वजह है के इस निकाय चुनाव ( Nikay Chunav) में बसपा फिर से मुस्लिमों की जोड़ने की कोशिश में है. बसपा अध्यक्ष मायावती के तमाम बयानों में भी अब अल्पसंख्यकों की बात होती है. कुछ समय पहले पार्टी ने इमरान मसूद को जब शामिल किया तो उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपी. इसके अलावा पार्टी ने शाइस्ता परवीन को भी महापौर का चुनाव लड़ाने की तैयारी की थी.हालांकि बाद में प्रयागराज कांड के चलते स्थितियां अब जरूर बदल गयी हैं.

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बात समाजवादी पार्टी की करें तो पार्टी ने विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों पर फोकस किया था. भले सरकार न बनी हो लेकिन ये भी सच है कि मुस्लिमों ने भी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को जमकर वोट किया था तभी सपा ने अपनी स्थापना से लेकर आज तक का सबसे अधिक वोट इस विधानसभा चुनाव में हासिल किया था.

नतीजा ये रहा कि 2022 के चुनाव में 34 मुस्लिम विधायक चुनाव जीत गए. जबकि वर्ष 2017 के चुनाव में मुस्लिम विधायकों की संख्या 24 थी. यानी इस बार 10 मुस्लिम विधायकों की संख्या बढ़ गई हालांकि बात पिछले शहरी निकाय चुनाव की करें तो सपा का एक भी उम्मीदवार मेयर पद पर नहीं जीत पाया.अलीगढ़, मुरादाबाद जैसी सीटों पर सपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे लेकिन वह भी नहीं जीत सके थे.इस बार सपा फिर से मुस्लिमों पर फोकस करने की कवायद में जुटी है.

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