मुस्लिम वोटो पर सभी पार्टियों की है पैनी नजर

लखनऊ । विधानसभा और लोकसभा में एक भी मुस्लिम को टिकट न देने वाली भाजपा जहां इस बार मुस्लिमों पर फोकस कर रही है तो वहीं सपा और बसपा के बीच भी रस्साकसी तेज हो गई है। फोकस मुस्लिम वोटरों पर है। (nikay chunav) नगर निकाय चुनाव में इस बार भी मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में करने के लिए सभी मुख्य दल जोर लगा रहे हैं।

समीकरण बनाने के लिए दल अपनी नीतियों में बदलाव तक करने को तैयार हैं। बावजूद इसके सवाल वही है कि मुस्लिम किस ओर जाएगा। क्या मुस्लिम भाजपा में भी भरोसा दिखाएंगे। शहरी निकाय चुनाव को लेकर मैदान तैयार होने लगा है।(nikay chunav) सभी निकायों में दलों ने भी अपनी पूरी ताकत लगा दी है तो वहीं भावी प्रत्याशियों ने भी सियासी बिसात पर चालें चलनी शुरू कर दी है।

सपा की आपत्तियों के कारण निस्तारण में लगा ज्यादा समय

सबसे पहले जद्दोजहद टिकट हासिल करने की है। जहां दावेदारों ने इसके लिए ताल ठोकनी शुरू कर दी है तो वहीं राजनीतिक दलों ने भी गुणा भाग शुरू कर दिया है। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माने जा रहे इस चुनाव में इस बार कई चौंकाने वाले कदम पार्टिंयां उठाने जा रही है।

इस बार भी सभी दलों का फोकस मुस्लिमों पर है। चूंकि प्रदेश में लगभग दो दर्जन जिले ऐसे हैं जो जिनमें मुस्लिमों की खासी संख्या है। ऐसे में ये किसी भी चुनाव का परिणाम बदल सकते हैं। यही कारण है कि सभी दल मुस्लिमों के रुख को भांपने के लिए एडी चोटी का जोर लगा रहे हैं।

समाजवादी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों पर फोकस किया था। यह चुनाव सपा ने रालोद के साथ मिलकर लड़ा था। मुस्लिमों ने भी सपा को जमकर वोट किया और उसके 34 मुस्लिम विधायक चुनाव जीत गए जबकि 2017 के चुनाव में मुस्लिम विधायकों की संख्या 24 थी। दस मुस्लिम विधायकों की संख्या बढ़ी। बावजूद इसके सपा उप्र में भाजपा को सरकार बनाने से नहीं रोक पाई। उधर पिछले शहरी निकाय चुनाव में सपा ने करारी शिकस्त महापौर के चुनाव में खाई। उसका एक भी उम्मीदवार महापौर पद पर नहीं जीत पाया। अलीगढ़, मुरादाबाद जैसी सीटों पर सपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे पर जीत नहीं सके। (nikay chunav) इस बार फिर से सपा मुस्लिमों पर फोकस करने की बात कर रही है। वह पहली बार रालोद के साथ मिलकर निकाय चुनाव भी लड़ रही है। उसे इसका लाभ मिलने की भी आस है।

बसपा को पिछले चुनाव में मुस्लिम दलित समीकरण का लाभ मिला था। उसने इसी समीकरण से मेरठ और अलीगढ़ में महापौर की सीटें जीत ली थीं। इन सीटों पर मुस्लिमों ने जमकर बसपा को वोट किया था। विधानसभा चुनाव 2022 में जिस तरह से काडर वोटर और मुस्लिम वोटर दोनों बसपा से खिसका, उसने बसपा के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। वह बस एक ही सीट जीत पाई। ऐसे में इस निकाय चुनाव में बसपा फिर से मुस्लिमों को जोड़ने की कोशिश में है। मुस्लिमों में बसपाई संदेश दे रहे हैं कि केवल मुस्लिम और दलित मिलकर ही भाजपा को रोक सकते हैं।

अहम बात यह है कि इस बार भाजपा भी मुस्लिमों को नगर निकाय चुनाव में अपेक्षाकृत ज्यादा संख्या में जोड़ने की कोशिश कर रही है। खास तौर से पसमांदा समाज के मुस्लिमों पर फोकस किया जा रहा है। सम्मेलन तक किए गए हैं। वहीं, नगर निगमों में 980 पार्षद पदों की तुलना में 844 पर ही बीजेपी ने चुनाव लड़ा था। कारण कि बाकी मुस्लिम बाहुल्य वार्ड थे। यहां भाजपा के पास उम्मीदवार ही नहीं थे, लेकिन अब हालात बदल गए हैं।
उप्र में 24 जिले ऐसे हैं, जहां मुस्लिमों की संख्या 20% से ज्यादा है। इसके अलावा 12 जिलों में मुस्लिम आबादी 35% से 52% तक है। संभल, सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, बहराइच, मुजफ्फरनगर, बलरामपुर, मेरठ, अमरोहा, रामपुर, बरेली, श्रावस्ती में मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा है। उधर अलीगढ़, मुरादाबाद, फिरोजाबाद, संभल, शामली सहित कई जिलों में नगर पंचायतों में भी मुस्लिम वोटर बड़ी संख्या में हैं।

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